मैं भारत का संविधान हूँ।............
मेरा अंतर्मन घायल है दुःख की गाँठें खोल रहा हूँ।
मैं शक्ति का अमर गर्व हूँ आजादी का विजय पर्व हूँ।।
पहले राष्ट्रपति का गुण हूँ बाबा भीमराव का मन हूँ।
मैं बलिदानों का चन्दन हूँ कर्त्तव्यों का अभिनन्दन हूँ।।
लोकतंत्र का उदबोधन हूँ अधिकारों का संबोधन हूँ।
मैं आचरणों का लेखा हूँ कानूनी लछमन रेखा हूँ।।
कभी-कभी मैं रामायण हूँ कभी-कभी गीता होता हूँ।
रावण वध पर हँस लेता हूँ दुर्योधन हठ पर रोता हूँ।।
मेरे वादे समता के हैं दीन दुखी से ममता के हैं।
कोई भूखा नहीं रहेगा कोई आँसू नहीं बहेगा।।
मेरा मन क्रन्दन करता है जब कोई भूखा मरता है।
मैं जब से आजाद हुआ हूँ और अधिक बर्बाद हुआ हूँ।।
मैं ऊपर से हरा-भरा हूँ संसद में सौ बार मरा हूँ।
मैंने तो उपहार दिए हैं मौलिक भी अधिकार दिए हैं।।
धर्म कर्म संसार दिया है जीने का अधिकार दिया है।
सबको भाषण की आजादी कोई भी बन जाये गाँधी।।
लेकिन तुमने अधिकारों का मुझमे लिक्खे उपचारों का।
क्यों ऐसा उपयोग किया है सब नाजायज भोग किया है।।
मेरा यूँ अनुकरण किया है जैसे सीता हरण किया है।
मैंने तो समता सौंपी थी तुमने फर्क व्यवस्था कर दी।।
मैंने न्याय व्यवस्था दी थी तुमने नर्क व्यवस्था कर दी।
हर मंजिल थैली कर डाली गंगा भी मैली कर डाली।।
शांति व्यवस्था हास्य हो गयी विस्फोटों का भाष्य हो गयी।
आज अहिंसा बनवासी है कायरता के घर दासी है।।
न्याय व्यवस्था भी रोती है गुंडों के घर में सोती है।
पूरे कांप रहे आधों से राजा डरता है प्यादों से।।
गाँधी को गाली मिलती है डाकू को ताली मिलती है।
क्या अपराधिक चलन हुआ है मेरा भी अपहरण हुआ है।।
मैं चोटिल हूँ क्षत विक्षत हूँ मैंने यूँ आघात सहा है।
जैसे घायल पड़ा जटायु हारा थका कराह रहा है।।
जिन्दा हूँ या मरा पड़ा हूँ, अपनी नब्ज टटोल रहा हूँ।
मैं भारत का संविधान हूँ लालकिले से बोल रहा हूँ।।
मेरे बदकिस्मत लेखे हैं मैंने काले दिन देखें हैं।
मेरे भी जज्बात जले हैं जब दिल्ली गुजरात जले हैं।
हिंसा गली-गली देखी है मैंने रेल जली देखी है।।
संसद पर हमला देखा है अक्षरधाम जला देखा है।
मैं दंगों में जला पड़ा हूँ आरक्षण से छला पड़ा हूँ।।
मुझे निठारी नाम मिला है खूनी नंदीग्राम मिला है।
माथे पर मजबूर लिखा है सीने पर सिंगूर लिखा है।।
गर्दन पर जो दाग दिखा है ये लश्कर का नाम लिखा है।
मेरी पीठ झुकी दिखती है मेरी सांस रुकी दिखती है।।
आँखें गंगा यमुना जल हैं मेरे सब सूबे घायल हैं।
माओवादी नक्सलवादी घायल कर डाली आजादी।।
पूरा भारत आग हुआ है जलियांवाला बाग़ हुआ है।
मेरा गलत अर्थ करते हो सब गुणगान व्यर्थ करते हो।।
खूनी फाग मनाते तुम हो मुझ पर दाग लगाते तुम हो।
मुझको वोट समझने वालो मुझमे खोट समझने वालो।।
पहरेदारो आँखें खोलो दिल पर हाथ रखो फिर बोलो।
जैसा हिन्दुस्तान दिखा है वैसा मुझमे कहाँ लिखा है।।
वर्दी की पड़ताल देखकर नाली में कंकाल देखकर।
मेरे दिल पर क्या बीती है जिसमे संप्रभुता जीती है।।
जब खुद को जलते देखा है धुर्व तारा चलते देखा है।
जनता मौन साध बैठी है सत्ता हाथ बांध बैठी है।।
चौखट पर आतंक खड़ा है दिल में भय का डंक गड़ा है।
कोई खिड़की नहीं खोलता आँसू भी कुछ नहीं बोलता।।
सबके आगे प्रश्न खड़ा है देश बड़ा या स्वार्थ बड़ा है।
इस पर भी खामोश जहां है तो फिर मेरा दोष कहाँ है।।
संसद मेरा अपना दिल है तुमने चकनाचूर कर दिया।
राजघाट में सोया गाँधी सपनों से भी दूर कर दिया।।
राजनीति जो कर दे कम है नैतिकता का किसमें दम है।
आरोपी हो गये उजाले मर्यादा है राम हवाले।
भाग्य वतन के फूट गए हैं दिन में तारे टूट गए हैं।
मेरे तन मन डाले छाले जब संसद में नोट उछाले।।
जो भी सत्ता में आता है वो मेरी कसमें खाता है।
सबने कसमों को तोडा है मुझको नंगा कर छोड़ा है।।
जब-जब कोई बम फटता है तब-तब मेरा कद घटता है।
ये शासन की नाकामी है पर मेरी तो बदनामी है।।
दागी चेहरों वाली संसद चम्बल घाटी दीख रही है।
सांसदों की आवाजों में हल्दी घाटी चीख रही है।।
मेरा संसद से सड़कों तक चीर हरण जैसा होता है।
चक्र सुदर्शनधारी बोलो क्या कलयुग ऐसा होता है।।
मुझे तवायफ के कोठों की एक झंकार बना डाला है।
वोटों के बदले नोटों का एक दरबार बना डाला है।।
मेरे तन में अपमानों के भाले ऐसे गड़े हुए हैं।
जैसे शर सैया के ऊपर भीष्म पितामह पड़े हुए हैं।।
मुझको धृतराष्ट्र के मन का गौरखधंधा बना दिया है।
पट्टी बांधे गांधारी माँ जैसा अँधा बना दिया है।।
मेरे पहरेदारों ने ही पथ में बोये ऐसे काँटें।
जैसे कोई बेटा बूढी माँ को मार गया हो चांटे।।
छोटे कद के अवतारों ने मुझको बौना समझ लिया है।
अपनी-अपनी खुदगर्जी के लिए खिलौना समझ लिया है।।
मैं लहु में लथ पथ होकर जनपथ हर पथ डौल रहा हूँ।
शायद नया खून जागेगा इसीलिये मैं व्यथा खौल रहा हूँ।।
............. लालकिले से बोल रहा हूँ।।
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