रानी थी वह झांसी की।
पर भारत जननी कहलाई।।
स्वातंत्र्य वीर आराध्य बनी।
वह भारत माता कहलाई।।
मन में अंकुर आजादी का।
शैशव से ही था जमा हुआ।।
यौवन में वह प्रस्फुटित हुआ।
भारत भू पर वट वृक्ष बना।।
अंग्रेजों की उस हड़प नीति का।
बुझदिल उत्तर ना दे पाए।।
तब राज महीषी ने डटकर।
उन लोगों के दिल दहलाए।।
वह दुर्गा बनकर कूद पड़ी।
झांसी का दुर्ग छावनी बना।।
छक्के छूटे अंग्रेजों के।
जन जागृति का तब बिगुल बजा।।
संधि सहायक का बंधन।
राजाओं को था जकड़ गया।।
नाचीज बने बैठे थे वे।
रानी को कुछ संबल न मिला।।
कमनीय युवा तब अश्व लिए।
कालपी भूमि पर कूद पड़ी।।
रानी थी एक वे थे अनेक।
वह वीर प्रसू में समा गई।।
दुर्दिन बनकर आए थे वे।
भारत भू को वे कुचल गए।।
तुमने हमको अवदान दिया।
वह सबक सीखकर चले गए।।
है हमें आज गरिमा गौरव।
तुम देशभक्ति में लीन हुई।।
जो पंथ बनाया था तुमने।
हम उस पर ही आरूढ़ हुए।।
हे देवी! हम सभी आज।
व्याकुल हैं नत मस्तक हैं।।
व्यक्तित्व तुम्हारा दिग्दर्शक।
पथ पर बढ़ने को आतुर हैं।।
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