Saturday, 25 January 2020

तिरंगे में लिपट जाऊंगा,,,,क्रांतिकारी कविता,,,,,,

जब भी दुश्मन का मन डोलेगा गन्दा कभी।
बिजली बनकर उनको जला जाऊंगा।।

मेरा ईमान मेरा धर्म मेरा कर्म मेरा वतन।
ऐ वतन तुझपे कुर्बान सब कर जाऊंगा।

सीमा पर खड़ा रहूंगा बनकर चौकीदार मैं।
घुसपैठियों के सिर कलम कर जाऊंगा।।

गिरेगी लाशें तेरी गोद में वीरों की कभी।
दहकता शोला बनकर सब को जला जाऊंगा।।

क्या होती है महोब्बत वतन ऐ परस्तों।
मातृभूमि की रक्षा हेतु फांसी चुम जाऊंगा।।

आएगी दामन पर आंच कभी भारत माता।
मेरे लहू से तेरी मांग सजा जाऊंगा।।

करेगा दुश्मन घाव तेरे आँचल पर भारत माता।
दुश्मनों के नरमुंडों की जयमाला पहनाऊंगा।।

लडूंगा अंतिम सांस जब तक लहू रहेगा।
अखण्ड भारत में तिरंगा ध्वज लहराऊंगा।।

घिर जाऊंगा अकेला दुश्मनों में नगमे तेरे ही गाऊंगा।
गोद में सिर रखकर "मनीष" तिरंगे में लिपट जाऊंगा।।

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Shree Ram Building Contractor
Ajitgarh, Sikar Raj.

Friday, 18 October 2019

Shree Ram Building Contractor

Ajitgarh, District (Sikar) Raj.

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Saturday, 12 January 2019

राम बिना सूनी आयोध्या....

तावड़ा छोड़ो मन्दरो पड़ जा रे।
म्हारो राम गियो बनवास सूरज बादल में छुप जा रे।।

आगे आगे राम चलत है पीछे लक्षण भाई।
बीच-बीच में चाले जानकी राजा जनक की जाई।।

राम बिना म्हारी सूनी अयोध्या लखन बिना ठुकराई।
सिया मात बिना सुनी रसोई कुंण करे चतुराई।।

ताबड़ा थोड़ो सो मन्दरो पड़ जा रे।
म्हारो राम गियो बनवास सूरज बादल में छुप जा रे।।

रावण मार राम घर आए घर - घर बटें बधाई।
माता कौशल्या देख आसरो तुलसीदास जस गाई।।

ताबड़ा थोड़ो सो मन्दरो पड़ जा रे।
म्हारो राम गियो बनवास सूरज बादल में छुप जा रे।।

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Shree Ram Building Contractor Ajitgarh, (Sikar) Rajasthan

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Thursday, 27 December 2018

भारतीय नारी शक्ति

औरत को कोमल कहने वालो सुनलो मेरी बात।
आओ आज तुम्हे बतलाऊ औरत की औकात।।

यदि औरत कोमल होती तो, प्रसव की पीड़ा कैसे सहती।
अंतरिक्ष तक न वो पहुंचती, घूँघट में ही सिमटी रहती।।

इंदिरा सी बन कर न करती वो देश पे बरसो राज।
हाथों में तलवार थामकर अंग्रेजो से न वो लड़ती।।

निज सतीत्व की रक्षा हेतु, पद्मावती सा जोहर न करती।
पन्ना बन निज सूत का ही वो करती न बलिदान।।

यदि होती अबला नारी तो, नरमुंडों का हार न पहनती।
और कभी वो दुर्गा बन कर दुष्टों का संहार न करती।।

शब्दों में ही देखलो अंतर, नारी नर पर भारी है।
राधा- श्याम और सीता-राम में भी, औरत की पहली बारी है।।

नारी बिना न पूरी होती मर्दो की ये जाति।
यदि नारी न होती जग में सृष्टि बंजर रह जाती।।

सब कुछ सूना होता, हर देहरी मरघट कहलाती।
एक औरत ही पूरा करती सृष्टि और समाज।।

औरत को बस देह न समझो, वो तो एक चिंगारी है।
इज्जत दो तो जान लुटा दे , वर्ना सिंहनी बन दहाड़ी है।।

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Wednesday, 31 October 2018

धर्म और विज्ञान

धर्म का विज्ञान से, भक्त का भगवान से।
क्या रिश्ता, हम जान लें, कुरान का गीता से।।

धर्म जीने की कला, मजहबों का सार है।
जीवित कैसे हम रहें, विज्ञान पर ये भार है।।

धर्म से ही मान है, विज्ञान से अभिमान है।

कुदरत से मिली ये दो आंखें, मानवता की शान हैं।।

धर्म दुःख की है दवा, विज्ञान मरहम दर्द का।
जिसने भी समझी ये हकीकत, समझो गुणों की खान है।।

धर्म सुख का जन्मदाता, विज्ञान मां आनंद की।
जिसने भी जानी ये पहेली, वही सुखी इंसान है।।

धर्म मन का है नियंता, विज्ञान तन का दास है।
धर्म निर्मल हास्य तो, दूजा निरा परिहास है।।

धर्म से जीवन खिला, विज्ञान से संसार ये।
धर्म से पावन धरा, विज्ञान से आकाश ये।।

धर्म मन की भूख तो, विज्ञान तन की प्यास है।
धर्म में आशा जगत की, विज्ञान तन की आस है।।

धर्म पढ़ाता, पाठ मर्म का, कर्म धुरी विज्ञान की।
धर्म भरता प्रेम जगत में, रक्षा करता ज्ञान की।।
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Tuesday, 10 April 2018

कचरा खाने को मजबूर गौवंश...... हाल - ए - गौ माता

गौमाता की पीड़ा
कृष्ण दुलारी कितनी खुश थी, नन्दगांव बरसाने में ।
कचरा खाती आज घूमती वही गाय वीराने में ।।

घर में रखा, देखभाल की, जब तक गाय ने दूध दिया ।।
सड़कों और गलियोँ में छोड़ा बेरहमी से त्याग दिया ।।

कील, प्लास्टिक, शीशा खाकर, मरने को मजबूर किया ।
तड़प, तड़प कर प्राण दिये, गाय ने क्या कसूर किया ।।

लाखों गाय कट रहीं निरंतर, हर कत्लखाने में ,
कृष्ण दुलारी कितनी खुश थी, नन्दगांव बरसाने में ।
कचरा खाती आज घूमती वही गाय वीराने में ।।

प्लास्टिक और कचरा मिल कर, जहर बना देते हैं ।
लाखों कीड़े अन्दर से हर पेट में पीड़ा देते हैं ।।

कष्ट, यातना देदेके, बीमार बना देते हैं ।
खड़ी नहीं रह सकती, इतना कमज़ोर बना देते हैं ।।

पेट में बच्चा खाए गंदगी, शेष नहीं कुछ खाने में ,
कृष्ण दुलारी कितनी खुश थी, नन्दगांव बरसाने में ।
कचरा खाती आज घूमती वही गाय वीराने में ।।

आखरी सांसे लेती लेती दुर्घटना में मरती है ।
कभी कभी गाय के ऊपर से पूरी गाड़ी गुज़रती है ।।

लहु लुहान होकर के फिर गौमाता आहें भरती है ।
रोयें सारे देवी देवता बेबस रोती धरती है ।।

कैसे कैसे जुल्म सहे हैं ऐसे बेदर्द ज़माने में ,
कृष्ण दुलारी कितनी खुश थी, नन्दगांव बरसाने में ।
कचरा खाती आज घूमती वही गाय वीराने में ।।

नन्दबाबा गौभक्त थे, लाखों गाय रखते थे ।
रघु असंख्य गायों का, पालन पोषण करते थे ।।

सारे हमारे ऋषि मुनि, गौ की सेवा करते थे ।
दूध की नदियां बहती थीं, सोने के खज़ाने भरते थे ।।

राम, कृषण दोनों जन्मे, गाय के घराने में ,
कृष्ण दुलारी कितनी खुश थी, नन्दगांव बरसाने में ।
कचरा खाती आज घूमती वही गाय वीराने में ।।

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Saturday, 9 December 2017

भारतीय संविधान एवं लोकतंत्र पर वर्तमान कविता.......

मैं भारत का संविधान हूँ।............      

मेरा अंतर्मन घायल है दुःख की गाँठें खोल रहा हूँ।
मैं शक्ति का अमर गर्व हूँ आजादी का विजय पर्व हूँ।।

पहले राष्ट्रपति का गुण हूँ बाबा भीमराव का मन हूँ।
मैं बलिदानों का चन्दन हूँ कर्त्तव्यों का अभिनन्दन हूँ।।

लोकतंत्र का उदबोधन हूँ अधिकारों का संबोधन हूँ।
मैं आचरणों का लेखा हूँ कानूनी लछमन रेखा हूँ।।

कभी-कभी मैं रामायण हूँ कभी-कभी गीता होता हूँ।
रावण वध पर हँस लेता हूँ दुर्योधन हठ पर रोता हूँ।।

मेरे वादे समता के हैं दीन दुखी से ममता के हैं।
कोई भूखा नहीं रहेगा कोई आँसू नहीं बहेगा।।

मेरा मन क्रन्दन करता है जब कोई भूखा मरता है।
मैं जब से आजाद हुआ हूँ और अधिक बर्बाद हुआ हूँ।।

मैं ऊपर से हरा-भरा हूँ संसद में सौ बार मरा हूँ।
मैंने तो उपहार दिए हैं मौलिक भी अधिकार दिए हैं।।

धर्म कर्म संसार दिया है जीने का अधिकार दिया है।
सबको भाषण की आजादी कोई भी बन जाये गाँधी।।

लेकिन तुमने अधिकारों का मुझमे लिक्खे उपचारों का।
क्यों ऐसा उपयोग किया है सब नाजायज भोग किया है।।

मेरा यूँ अनुकरण किया है जैसे सीता हरण किया है।
मैंने तो समता सौंपी थी तुमने फर्क व्यवस्था कर दी।।

मैंने न्याय व्यवस्था दी थी तुमने नर्क व्यवस्था कर दी।
हर मंजिल थैली कर डाली गंगा भी मैली कर डाली।।

शांति व्यवस्था हास्य हो गयी विस्फोटों का भाष्य हो गयी।
आज अहिंसा बनवासी है कायरता के घर दासी है।।

न्याय व्यवस्था भी रोती है गुंडों के घर में सोती है।
पूरे कांप रहे आधों से राजा डरता है प्यादों से।।

गाँधी को गाली मिलती है डाकू को ताली मिलती है।
क्या अपराधिक चलन हुआ है मेरा भी अपहरण हुआ है।।

मैं चोटिल हूँ क्षत विक्षत हूँ मैंने यूँ आघात सहा है।
जैसे घायल पड़ा जटायु हारा थका कराह रहा है।।

जिन्दा हूँ या मरा पड़ा हूँ, अपनी नब्ज टटोल रहा हूँ।
मैं भारत का संविधान हूँ लालकिले से बोल रहा हूँ।।

मेरे बदकिस्मत लेखे हैं मैंने काले दिन देखें हैं।
मेरे भी जज्बात जले हैं जब दिल्ली गुजरात जले हैं।
हिंसा गली-गली देखी है मैंने रेल जली देखी है।।

संसद पर हमला देखा है अक्षरधाम जला देखा है।
मैं दंगों में जला पड़ा हूँ आरक्षण से छला पड़ा हूँ।।

मुझे निठारी नाम मिला है खूनी नंदीग्राम मिला है।
माथे पर मजबूर लिखा है सीने पर सिंगूर लिखा है।।

गर्दन पर जो दाग दिखा है ये लश्कर का नाम लिखा है।
मेरी पीठ झुकी दिखती है मेरी सांस रुकी दिखती है।।

आँखें गंगा यमुना जल हैं मेरे सब सूबे घायल हैं।
माओवादी नक्सलवादी घायल कर डाली आजादी।।

पूरा भारत आग हुआ है जलियांवाला बाग़ हुआ है।
मेरा गलत अर्थ करते हो सब गुणगान व्यर्थ करते हो।।

खूनी फाग मनाते तुम हो मुझ पर दाग लगाते तुम हो।
मुझको वोट समझने वालो मुझमे खोट समझने वालो।।

पहरेदारो आँखें खोलो दिल पर हाथ रखो फिर बोलो।
जैसा हिन्दुस्तान दिखा है वैसा मुझमे कहाँ लिखा है।।

वर्दी की पड़ताल देखकर नाली में कंकाल देखकर।
मेरे दिल पर क्या बीती है जिसमे संप्रभुता जीती है।।

जब खुद को जलते देखा है धुर्व तारा चलते देखा है।
जनता मौन साध बैठी है सत्ता हाथ बांध बैठी है।।

चौखट पर आतंक खड़ा है दिल में भय का डंक गड़ा है।
कोई खिड़की नहीं खोलता आँसू भी कुछ नहीं बोलता।।

सबके आगे प्रश्न खड़ा है देश बड़ा या स्वार्थ बड़ा है।
इस पर भी खामोश जहां है तो फिर मेरा दोष कहाँ है।।

संसद मेरा अपना दिल है तुमने चकनाचूर कर दिया।
राजघाट में सोया गाँधी सपनों से भी दूर कर दिया।।

राजनीति जो कर दे कम है नैतिकता का किसमें दम है।
आरोपी हो गये उजाले मर्यादा है राम हवाले।

भाग्य वतन के फूट गए हैं दिन में तारे टूट गए हैं।
मेरे तन मन डाले छाले जब संसद में नोट उछाले।।

जो भी सत्ता में आता है वो मेरी कसमें खाता है।
सबने कसमों को तोडा है मुझको नंगा कर छोड़ा है।।

जब-जब कोई बम फटता है तब-तब मेरा कद घटता है।
ये शासन की नाकामी है पर मेरी तो बदनामी है।।

दागी चेहरों वाली संसद चम्बल घाटी दीख रही है।
सांसदों की आवाजों में हल्दी घाटी चीख रही है।।

मेरा संसद से सड़कों तक चीर हरण जैसा होता है।
चक्र सुदर्शनधारी बोलो क्या कलयुग ऐसा होता है।।

मुझे तवायफ के कोठों की एक झंकार बना डाला है।
वोटों के बदले नोटों का एक दरबार बना डाला है।।

मेरे तन में अपमानों के भाले ऐसे गड़े हुए हैं।
जैसे शर सैया के ऊपर भीष्म पितामह पड़े हुए हैं।।

मुझको धृतराष्ट्र के मन का गौरखधंधा बना दिया है।
पट्टी बांधे गांधारी माँ जैसा अँधा बना दिया है।।

मेरे पहरेदारों ने ही पथ में बोये ऐसे काँटें।
जैसे कोई बेटा बूढी माँ को मार गया हो चांटे।।

छोटे कद के अवतारों ने मुझको बौना समझ लिया है।
अपनी-अपनी खुदगर्जी के लिए खिलौना समझ लिया है।।

मैं लहु में लथ पथ होकर जनपथ हर पथ डौल रहा हूँ।
शायद नया खून जागेगा इसीलिये मैं व्यथा खौल रहा हूँ।।

                   ............. लालकिले से बोल रहा हूँ।।

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