Sunday, 1 October 2017

पापा की परी हूँ मैं......एक मार्मिक कविता

मैं   भी   लेती   श्वास   हूँ ।
पत्थर   नहीं   इंसान   हूँ ।।

कोमल   मन   है   मेरा ।
वही  भोला  सा  है चेहरा ।।

जज़बातों   में   जीती   हूँ ।
बेटा   नहीं,  पर   बेटी   हूँ ।।

कैसे   दामन   छुड़ा   लिया ।
जीवन के पहले ही मिटा दिया।।

तुझ   से   ही   बनी   हूँ ।
बस  प्यार  की  भूखी  हूँ ।।

जीवन    पार    लगा    दूंगी ।
अपनालों, बेटा भी बन जाऊँगी ।।

दिया   नहीं   कोई   मौका ।
बस  पराया  बनाकर  सोचा ।।

एक   बार  गले  से  लगा  लो ।
फिर चाहे हर कद पे आज़मालो ।।

हर  लड़ाई  जीत  कर  दिखाऊंगी ।
मैं अग्नि में जलकर भी जी जाऊँगी ।।

चंद  लोगो  की सुन ली  तुमने ।
मेरी   पुकार   ना   सुनी  तुमने ।।

मैं  बोझ  नहीं, भविष्य  हूँ ।
बेटा   नहीं,  पर   बेटी   हूँ ।।

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Ajitgarh (Sikar) Raj.

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